Why is an egg spherical?Bal Vanita Mahila AshramA small question before answering:4If you are given a medicine of one of these shapes, then which size do you think is the safest to swallow?
अंडा गोलाकार ही क्यों होता है?
उत्तर देने से पूर्व एक छोटा सा प्रश्न :
यदि आपको इनमें से किसी एक आकृति की औषधि दी जाए तो किस आकार को आप सबसे सुरक्षित समझते हुए निगलने में संकोच नहीं करेंगे?
इनमें मात्र गोलाकार आकृति ही हमारे गले में नहीं फँसेगी।
अतः अण्डे गोलाकार अथवा लगभग गोलाकार (अण्डाकार) होते हैं।
प्रकृति भी एक अभियन्ता के समान निरन्तर अपनी रचनाओं की बनावट में परिस्थितियों के अनुसार सुधार करती रहती है। अण्डे किसी भी जीव के अण्डाशय में बनते हैं।
अधिकांश मछलियाँ पानी में ही ढेर सारे छोटे छोटे अण्डे देती हैं, इन अण्डों पर एक पतली सी झिल्ली होती है, और एक चिपचिपे द्रव्य में सने यह अण्डे पानी में एक साथ तैरते रहते हैं जिन्हें नर मछलियाँ निषेचित कर देती हैं। एक साथ तैरते हुए अण्डों में अलग-अलग तैरते अण्डों की तुलना में निषेचन सरल तथा अधिक सम्भावना वाला भी है।
यह अण्डे पूर्ण रूप से गोल होते हैं। कारण भौतिक विज्ञान के नियमों में है।
प्रथम, अण्डाशय से गोल आकार के अण्डे सरलता से बाहर आ पाते हैं।
दूसरा, अण्डे की सतह की पतली झिल्ली उसके भीतरी लगभग द्रवित अवस्था में पदार्थ को सतह के पृष्ठ-तनाव के कारण उसे न्यूनतम सतही-क्षेत्रफल वाली गोलाकार आकृति में रखती है। गणित के अनुसार समान आयतन वाली किन्हीं भी आकृतियों में गोले का सतही क्षेत्रफल न्यूनतम होता है।
तीसरा, तैरते रहने से इन अण्डों पर उत्प्वावन बल के कारण गुरुत्वाकर्षण बल से होने वाली विकृति न्यूनतम होती है और इनका स्वरूप गोल बना रहता है।
मछलियों के अण्डों को केवियार कहते हैं और इसे एक विलासिता वाला भोजन माना जाता है।
स्थल पर अण्डे देने वाले जीवों के अण्डे यदि मछलियों और मेण्ढकों के अण्डों की भाँति यदि पतली झिल्ली वाले होते तो उनका द्रव बच्चों के विकसित होने से पहले ही सूख जाता। यहाँ प्रकृति की अभियांत्रिकी देखी जा सकती है, स्थल पर अण्डे देने वाले जीवों के अण्डों पर एक ठोस खोल होती है, जो कि अण्डे के भीतर के द्रव्य को सूखने से रोकती है, तथा गर्भस्थ भ्रूण को अपने विकास के लिए उचित पोषण मिल सके।
(यह चित्र The eggs of this Asian House Gecko से)
यह एक घरेलू छिपकली है, जिसके अण्डे लगभग पूरी तरह से विकसित हो गए हैं। इनके अण्डे गोल होते हैं।
(यह चित्र House Lizard egg से)
किन्तु गोलाकार अण्डे को अपने शरीर से बाहर धकेलने में अण्डज जीवों को कुछ कठिनाई रहती है, और अण्डे के आकार में वृद्धि के साथ उन अण्डों की बनावट में भी अन्तर देखा जा सकता है। जैसे अनेक ऐसे जीवों में विशेषतः सर्पों के अण्डों में एक अनूठी बात जो हमें देखने को मिलती है।
सर्प के शरीर से अण्डे आसानी से खिसक कर बाहर आ पाएँ, इसके लिए प्रकृति ने अनेक सर्प-प्रजातियों के अण्डों को गोल सिरे वाले बेलनाकार स्वरूप में विकसित किया है। (यह चित्र gogle से साभार)
इस बनावट में भी कुछ कमियाँ हैं। यदि अण्डे अधिक बडे हों तो इन्हें जनने में उतनी ही अधिक कठिनाई होगी। अतः अनेक प्रजातियों में अण्डों के एक छोर का कुछ गोल-शंक्वाकार (rounded cone-shaped) रूप में विकास हुआ है। जैसे कि मुर्गी तथा अन्य पक्षियों के अण्डे।
ऊपर से घड़ी की सुइयों की दिशा में शतरमुर्ग (ostrich), एमू (emu), र्हेया (rhea) और मुर्गी (hen) के अण्डे (चित्र किसान से साभार)। इन सभी में आकार कुछ लम्बा है, जिसमें एक ओर से यह कुछ अधिक शंक्वाकार हैं, इस सिरे को आगे रख कर अण्डे अपेक्षाकृत सरलता से जने जाते हैं।
यह समझने के लिए रबर की एक नली से गोल तथा अण्डाकार एवं अन्य प्रकार की वस्तुओं को एक सिरे से दूसरे सिरे तक निकालने का प्रयास कीजिये। इसका कारण यह आकार अधिक वायुगतिकीय (aerodynamic) है।
(यह चित्र केएलएम के ब्लॉग से साभार)
विमानों का अग्रभाग (नासिका — nose) अण्डे के आकार का होता है, जिससे हवा का घर्षण कम हो जाता है तथा विमान हवा को सरलता से भेद पाता है। इसी प्रकार अण्डे का ऐसा आकार अण्डे को उसकी जननी के शरीर से सरलता से बाहर आने में सहायक है।
स्तनधारियों में कुछ उंगलियों पर गिने जा सकने वाले अपवादों को छोड़कर अन्य सभी स्तनधारियों में अण्डे विकसित होकर अण्डाशय से गर्भाशय में आते हैं तथा वहाँ उनका निषेचन होता है।
यह अण्डे तरल वातावरण में ही रहते हैं, तथा पक्षियों एवं सरीसृपों के अण्डों की तुलना में यह बहुत छोटे एवं बाहरी सख्त परत के बिना होते हैं। अतः इनका आकार गोल होने से कोई कठिनाई नहीं होती।
मानव अण्डा गोलाकार है, किन्तु यह गर्भाशय की दीवार पर स्थित करने के लिए यह कुछ खुरदुरी सतह वाले होते हैं। (चित्र गॉर्जियन पत्रिका से साभार)
अण्डे के मूल गोलाकार रूप को प्रकृति ने बारम्बार विकसित किया है, जिससे जीवों के अण्डों का उनके वातावरण के अनुकूल रूपान्तरण हुआ है। सभी अण्डों की बनावट उनकी जननी को हानि न पहुँचाए उसके अनुरूप गोल अथवा दीर्घवृत्ताभ (spherical or ellipsoid) होती है।
यथा,
हमें सताने वाले सबसे छोटे अण्डे में है जुँओं के अण्डे; इन्हें अंग्रेजी में nit — निट कहते हैं। इनका आकर इस प्रकार का है कि यह हमारे बालों को अच्छी तरह से जकड़ सकें। इन पर अधिकांश जूँ मारने की दवाएँ प्रभावहीन हैं।
यह छोटे अण्डे कुछ लम्बे आकार के होते हैं, तथा इन्हें देते हुए जुएँ इनके साथ हमारे बालों के प्रोटीन, केराटीन, के समान चिपचिपे प्रोटीन का प्रस्रवरण भी करती हैं। यह प्रोटीन शीघ्र सूख जाता है, जिससे यह अण्डे हमारे बालों पर चिपक जाता है। हमारे बालों पर इन अण्डों को चिपके रहने में कोई कठिनाई न हो पाए, इस कारण इन अण्डों का आकार लम्बा और कम व्यास का होता है।
विशेष :—
इन अण्डों को हाथ के नाखूनों से पकड़ कर ही सबसे आसानी से अलग किया जा सकता है। यह प्रक्रिया अंग्रेजी भाषा में छोटी-छोटी कमियों को ढूंढ निकालने के लिए प्रयुक्त मुहावरे "nit-picking" (निट-पिकिंग) के रूप में आई है।
अन्त में यह भी जान लें कि विभिन्न डाइनोसॉर के अण्डों का आकार कैसा होता था।
(डाइनोसॉर के अण्डों के जीवाश्म
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